मॉब लिंचिंग एक विसंगति Mob Lynching- A Nemesis

मॉब लिंचिंग एक ऐसी घटना जब लोकतंत्र कानून व्यवस्था प्रशासन इत्यादि को दरकिनार कर आक्रोशित भीड़ खुद ही किसी सजा का त्वरित निर्धारण कर देती है 

किसी अपराध के लिए या अनेक बार अफवाहों के आधार पर ही सजा देती है

यूं कहें तो भीड़तंत्र का फैसला है यह जहां किसी को भी साक्ष्य की चिंता नहीं...शायद जरूरत भी नहीं समझते आखिर भीड़ जो है।
और अंजाम कथित दोषी को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार देती है ये भीड़।

प्रशासन के लिए भी एक चुनौती है क्योंकि भीड़ का कोई निश्चित चेहरा नहीं होता।

 यदि इसके इतिहास की ओर रुख करें तो पता चलता है कि यह कोई आज की घटना नहीं बल्कि बरसों से चली आ रही एक चुनौती है फिर चाहे वह यूरोप की घटनाएं हो या अमेरिका में श्वेत और अश्वेत के बीच का संघर्ष और हिंसा और वर्तमान स्वरूप तो आप देख ही रहे हैं अक्सर आए दिन कहीं ना कहीं इस प्रकार की घटनाएं,खबरें आती रहती हैं
 एक वक्त था जब अमेरिकी सिविल वार यानी गृह युद्ध के दौरान छोटे-छोटे अपराध के लिए भीड़ द्वारा न्याय व्यवस्था से ऊपर उठकर इस प्रकार की घटना को अंजाम दिया जाता था, और वहीं से चला रहा है मॉब लिंचिंग का सिलसिला ।

लिंचिंग इस शब्द की बात करें तो कुछ तथ्य चार्ल्स लिंच...वर्जिनिया निवासी चार्ल्स लिंच जिन्होंने अमेरिकी क्रांति के दौरान अपना एक अलग कोर्ट ही बना लिया था उन्हें किसी संविधान या शासन की चिंता नहीं थी और सजा भी अपने हिसाब से देते थे यह बात है करीब 1750 ईसवी की
 वहीं दूसरे साक्ष्य विलियम लिंच की ओर इशारा करते हैं विलियम लिंच जिन्होंने एक अपना अलग लिंच लाॅ,
जो कि लीगल अथॉरिटी से स्वतंत्र आसान भाषा में कहें तो न्याय व्यवस्था से परे एक अलग  कानून बना लिया था ।
कुल मिलाकर कानून व्यवस्था को नजरअंदाज करती हुई भीड़ तंत्र का निर्णय,त्वरित और हिंसक निर्णय.... कहलाता है मॉब लिंचिंग


भारत के संदर्भ में बात करें तो इस प्रकार की घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं आए दिन कोई न कोई व्यक्ति हिंसक भीड़ का शिकार हो रहा है
चाहे वह झारखंड के रामपुर में गौ तस्करी के नाम पर एक व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या हो या असम में दो युवकों के बच्चा चोर होने के शक के चलते उन्हें पीट-पीटकर मौत के घाट उतार देना
यह लिस्ट इतनी छोटी नहीं है काफी लंबी है और बढ़ती ही जा रही है
दादरी कांड तो आपने सुना ही होगा वही जहां अखलाक नामक एक व्यक्ति को गौ हत्या के आरोप में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था

 तो त्रिपुरा में बच्चा उठाने के शक में तीन लोग मॉब लिंचिंग के शिकार हुए
उन्हें क्रिकेट की बैट से बेहद बुरी तरीके से पीटा गया और भी तमाम इस प्रकार की घटनाएं समाज में दिन प्रतिदिन एक कुरीति बनकर उभर रही हैं
कोई जाति विवाह की वजह से इसका शिकार हो रहा है तो किसी को चुड़ैल बता कर मारा जा रहा है
समाज में धर्म मजहब के नाम पर भी हिंसा कुछ कम नहीं अफवाहों के चलते संप्रदायिक तनाव हो जाते हैं
 कोई छेड़छाड़ के आरोप में भीड़ का शिकार बन रहा है कोई चोरी के आरोप में
अमरोहा में एक मंदबुद्धि युवक,    बच्चा चोरी के आरोप में कुछ इसी प्रकार भीड़ के हत्थे चढ़ गया,
 इस प्रकार की हिंसक घटनाओं में कई बार बदले की भावना भी हो सकती है एक दूसरे से बदला लेने के इरादे से भीड़ का इस्तेमाल भी कर लेना मॉब लिंचिंग के तहत ही आता है

 सुप्रीम कोर्ट ने इन हिंसक घटनाओं की निंदा की है और केंद्र व राज्य सरकारों को दिशा-निर्देश भी जारी किया है
साथ ही संसद को कड़ा कानून बनाने के लिए भी कहा है
 हालांकि हाल फिलहाल में यदि इस प्रकार की हिंसक घटनाओं में संलिप्त पाए जाने पर आईपीसी की धारा 307 जो की हत्या का प्रयास और 149 अर्थात आज्ञा के विरुद्ध इकट्ठा होना
 धारा 302 हत्या
 147-148 यह दंगा फसाद की धारा
 323 जानबूझकर घायल करना इत्यादि के तहत कार्रवाई की जाती है यह कार्रवाई और भी कठोर हो सकती है।

किसी भी सभ्य समाज के लिए भीड़तंत्र कहीं से भी शोभा नहीं देता प्रशासन अपने स्तर पर लगातार सक्रिय है लोगों को दिशा-निर्देश भी जारी करता रहता है
 किंतु सबसे प्रमुख है, लोगों का खुद से जागरूक होना
तभी इस प्रकार की विसंगतियों पर लगाम कसा जा सकता है
भड़काऊ सोशल मीडिया मैसेजेस पर त्वरित कार्रवाई के बजाय उसकी सत्यता की परख बहुत जरूरी है एक सर्वे के मुताबिक आज देश का 40 फ़ीसदी पढ़ा-लिखा युवा भी खबर की सच्चाई से अनभिज्ञ होते हुए भी मैसेज को फॉरवर्ड कर देता है अतः आपसे यही निवेदन है कि जागरूक बने फेसबुक व्हाट्सएप इत्यादि सोशल नेटवर्क के अफवाहों में ना फंसे किसी भी भड़काऊ मैसेज की सत्यता की परख करके ही उसे फॉरवर्ड करें,अपना और अपनों का ख्याल रखें
धन्यवाद

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