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पथ:a way to destination बढ़ते रहो, चलते रहो, चलना तुम्हारा धर्म है

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  पथ:a way to destination 👉A STAGE ON WHEELS ब ढ़ते रहो, चलते रहो, चलना तुम्हारा धर्म है.. होते क्यूँ निराश तुम? ये तो तुम्हारा कर्म है, मुश्किलें आती और जाती रहेंगी राह में, क्या किसी राही का रुकना,और मिट जाना भी धर्म है? तुममें ही मांझी छिपा है, तुम ही वो धनुर्धर, ये जहां होगा तुम्हारा; बस छोड़ न देना डगर। भीड़ में से लोग, तुम पर फब्तियां भी कसेंगे। तुम कहीं रुक न जाना; चलना तुम्हारा धर्म है... व्यर्थ में जाने न देना, बूँद भी इक स्वेद की; ये बूँद ही वो मोती है, जो लक्ष्य को भेदती। यदि हार भी गए, तो; इसमें भला, क्या शर्म है; बढ़ते रहो, चलते रहो, चलना तुम्हारा धर्म है..! तस्वीर:2022,(कानपुर उ.प्र.) अभिषेक त्रिपाठी (अयोध्या)

स्नेह का प्रतीक रक्षाबंधन Rakshabandhan

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पौराणिक काल से,भाई बहन के स्नेह का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहने भाइयों की कलाई पर रेशम की डोरी बांधकर भाई के सकुशल जीवन की कामना करती हैं और भाई बहन की रक्षा व मंगलमयता का संकल्प लेता है। बहनों द्वारा भाई की कलाई पर बांधा गया रक्षासूत्र रेशम का एक धागा मात्र नहीं,अपितु यह प्रतीक है,भारत की विविधता में एकबद्धता का। राखी के अलग अलग रंग विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं।समाज में भ्रातृभावना और सहयोग के मूल को समेटे यह पर्व आज अपनी व्यापकता और गहराई से चिरपरिचित है। इस पर्व के आयोजन के विविध रूप दृष्टिगोचर होते है। प्रकृति प्रेमी वृक्षों को रक्षासूत्र में बांधते है,जिसके पीछे छिपा रहस्य प्रकृति संरक्षण से है। प्राचीन काल में गुरुकुल की शिक्षा पूर्ण होने के उपरांत स्नातक विदा लेते वक्त आचार्य का आशीर्वाद लेने हेतु उन्हें रक्षासूत्र बांधता था,और  आचार्य भी अपने शिष्य के भावी जीवन की मंगलकामना एवं अर्जित ज्ञान का समुचित उपयोग की कामना से रक्षासूत्र बांधता था। इसी परंपरा के अनुरूप आज किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के पूर्व पुर...

समष्टिगत:विचार दूसरों की गलतियों से भी सीखें,To err is human.. Don't worry

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ग लतियां  मानव होने के बुनियादी लक्षणों में से एक है। ये कोई विकट समस्या नहीं,वरन यही तो वो सारगर्भित मूल है जिसे हम अपने अनुभव की लिस्ट में शामिल करते जाते हैं। हालांकि अनुभव अच्छे और बुरे दोनों हो सकते हैं। परंतु बुरे अनुभव मानव मस्तिष्क भर ज्यादा देर तक ठहरते हैं,और भविष्य के लिए स्वप्रेरण का काम करते हैं,सचेत करते रहते हैं ताकि वही भूल हम दोबारा से न कर बैठे। ये जरूरी नहीं कि इंसान अपनी ही गलतियों से सीखे हम दूसरों के अनुभवों का भी भरपूर इस्तेमाल, अपने भविष्य निर्माण में कर सकते हैं। यहां एक जरुरी बात ये कि दूसरों के अनुभवों से सीखने की आदत आपको उन त्रुटियों से बचा सकती है,क्योंकि अपनी गलतियों से सीख लेने हेतु आपको पहले उन त्रुटियों से होकर गुजरना पड़ सकता है। हमने अक्सर लोगों को कहते सुना है कि मुझे सफलता नहीं मिल रही,या फिर सफलता बहुत देर से मिली और भी अनेकों प्रश्न। इन सबकी वजह साफ है हम इन कमियों को नजरअंदाज करते आये हैं और व्यर्थ में परिस्थिति या किसी और को कोसते रहते हैं। मित्रों आज से प्रण कीजिये,गलती कोई भी करे,उससे सीखना आपको भी है,ऐसा करने से न सिर्फ आप उसे दुहराने से ...

पथ:a way to destination

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पथ:a way to destination     बढ़ते रहो, चलते रहो,         चलना तुम्हारा धर्म है.. होते क्यूँ निराश तुम?         ये तो तुम्हारा कर्म है, मुश्किलें आती और जाती रहेंगी राह में, क्या किसी राही का रुकना,और मिट जाना,भी धर्म है? तुममें ही मांझी छिपा है,            तुम ही वो धनुर्धर, ये जहां होगा तुम्हारा; बस छोड़ न देना डगर। भीड़ में से लोग, तुम पर फब्तियां भी कसेंगे, तुम कहीं रुक न जाना;         चलना तुम्हारा धर्म है... व्यर्थ में जाने न देना,बूँद भी इक स्वेद की; ये बूँद ही वो मोती है,जो लक्ष्य को भेदती। यदि हार भी गए,तो;            इसमें भला,क्या शर्म है; बढ़ते रहो, चलते रहो,चलना तुम्हारा धर्म है..!!    ©अभिषेक एन. त्रिपाठी (अयोध्या)