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गुनाहों का देवता उपन्यास समीक्षा पार्ट 2 / Gunahon Ka Devta Novel review Part 2

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  उपन्यास समीक्षा पार्ट 2 :- अभिषेक त्रिपाठी गुनाहों का देवता उपन्यास में लेखक ने अनेक रंगों का भी सहारा लिया है जो कथानक को और अधिक धार देते हैं कुछ प्रमुख चुनिंदा व्यंग प्रस्तुत है.. १. कोई प्रेमी है या फिलॉस्फर... देखा ठाकुर? :- नहीं यार उससे भी निकृष्ट जीव; कवि हैं ये, रविंद्र बिसारिया। २. विनती के ससुर के डील डौल का वर्णन करते वक्त इतना बड़ा पेट.. ये अभागा पलंग भी छोटा पड़ रहा है। ३. चांद कितनी ही कोशिश क्यूं ना कर ले, रात को दिन नहीं बना सकता। ४. बीच बीच में अवधी भाषा, क्षेत्रीय बोलियां पाठकों को बांधने में काफी सफल रहती हैं। इन सबके अलावा चंदर के व्यक्तित्व को एक पैनी दृष्टि से निहारें तो पता चलता है कार्य के प्रति समर्पण भी; उसमें कहीं कम नहीं था। जब उसे थीसिस पूरी करनी थी तो पूरे एक महीने तक सुधा से दूर रहा। वहीं सुधा के विवाह के दौरान एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी,निर्वाह का दायित्व भी चंदर पर ही था। चंदर का व्यक्तित्व भी समय के अनुसार दिशा और दशा तय करता था चंदर के दोस्त और विनती के ट्यूशन टीचर रविंद्र बिसारिया के, विनती के प्रति जरा सा संदेह होने पर; पूरी दृढ़ता ...

गुनाहों का देवता उपन्यास समीक्षा Gunahon Ka Devta Novel Review

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  गुनाहों का देवता उपन्यास समीक्षा Gunahon Ka Devta Novel Review ये आज फिजा खामोश है क्यों  हर जर्रे को आखिर होश है क्यों  या तुम ही किसी के हो न सके   या कोई तुम्हारा हो न सका   मौजें भी हमारी हो न सकी   तूफां भी हमारा हो न सका देवता तो तुम रहे,कुछ गुनाह तुमसे भी हो गए; पर भक्तों को देवता का हर गुनाह क्षम्य होता है। ये कुछ पंक्तियां हैं जो बयां करती है कथानक की गहराई को, यह बताती हैं कि प्रेम ठहराव, दृढ़ निश्चय, विश्वास और संकल्प से अभिसिंचित होता है। धर्मवीर भारती का बेहद सदाबहार,कालजयी उपन्यास जिसकी पृष्ठभूमि ब्रिटिश कालीन इलाहाबाद। कथानक आधारित है सुधा और चंदर की अमर प्रेम पर। प्रेम,समर्पण और समाज के बंधनों की कहानी,जहां प्रेम बेहद अलग तरीके, पाशविकता और वासना से कोसों दूर, प्रेम के उत्प्रेरक के रूप में झलकता है। कुछ अन्य पात्र विनती पम्मी,गीसू, बर्टी, बिसारिया, कैलाश। चंद्र कपूर यानी चंदर जो अपनी मां से झगड़ कर पढ़ाई के लिए प्रयाग भाग आया था। बी ए. में एडमिशन लेता है और उसके शिक्षक होते हैं डॉक्टर शुक्ला जिन के सानिध्य में बाद में...

गुनाहों का देवता ऑडियो समीक्षा Gunahon ka Devta novel audiobook review

गुनाहों का देवता उपन्यास ऑडियो समीक्षा Gunahon ka Devta novel audiobook review..

गुनाहों का देवता उपन्यास समीक्षा पार्ट 2 :- अभिषेक त्रिपाठी

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उपन्यास समीक्षा पार्ट 2 :- अभिषेक त्रिपाठी गुनाहों का देवता उपन्यास में लेखक ने अनेक रंगों का भी सहारा लिया है जो कथानक को और अधिक धार देते हैं कुछ प्रमुख चुनिंदा व्यंग प्रस्तुत है १.कोई प्रेमी है या फिलॉस्फर... देखा ठाकुर? :-  नहीं यार उससे भी निकृष्ट जीव; कवि हैं ये, रविंद्र बिसारिया। २. विनती के ससुर के डील डौल का वर्णन करते वक्त इतना बड़ा पेट.. ये अभागा पलंग भी छोटा पड़ रहा है। ३. चांद कितनी ही कोशिश क्यूं ना कर ले, रात को दिन नहीं बना सकता। ४.बीच बीच में अवधी भाषा, क्षेत्रीय बोलियां पाठकों को बांधने में काफी सफल रहती हैं। इन सबके अलावा चंदर के व्यक्तित्व को एक पैनी दृष्टि से निहारें तो पता चलता है कार्य के प्रति समर्पण भी; उसमें कहीं कम नहीं था। जब उसे थीसिस पूरी करनी थी तो पूरे एक महीने तक सुधा से दूर रहा। वहीं सुधा के विवाह के दौरान एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी,निर्वाह का दायित्व भी चंदर पर ही था। चंदर का व्यक्तित्व भी समय के अनुसार दिशा और दशा तय करता था चंदर के दोस्त और विनती के ट्यूशन टीचर रविंद्र बिसारिया के, विनती के प्रति जरा सा संदेह होने पर; पूरी दृढ़ता और बेहद ...