मनुष्य के भीतर का संसार ही उसके बाहर की दुनिया को गढ़ता है, इनर इंजीनियरिंग ।
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥"
मनुष्य के भीतर का संसार ही उसके बाहर की दुनिया को गढ़ता है। वह प्रक्रिया जिसमें इंसान अपनी भीतरी संरचना को दुरुस्त करता है, यह प्रक्रिया व्यक्ति को उसके शरीर, मन, प्राण और चेतना पर अधिकार दिलाकर, जीवन को एक आनंदमय समरसता में ढालती है।
रामायण का प्रसंग स्मरण होता है हनुमान को अपनी शक्ति का ज्ञान तभी हुआ जब जाम्बवान् ने उन्हें भीतर की ओर झाँकने को प्रेरित किया। यही आत्म-खोज का प्रथम चरण है। महाभारत में अर्जुन की विषाद अवस्था भी भीतर की उलझन का प्रतीक है, जिसे श्रीकृष्ण ने ज्ञान और ध्यान से रूपांतरित किया। पश्चिम में सुकरात ने कहा था "Know thyself" यही आत्म-ज्ञान की चाबी है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो ध्यान (Meditation) मस्तिष्क की तरंगों को संतुलित करता है, न्यूरॉन्स को नई दिशा देता है, और मनोविज्ञान बताता है कि भीतर की शांति ही बाहर की सफलता को जन्म देती है। स्टीव जॉब्स ने ज़ेन ध्यान की साधना से अपनी रचनात्मकता को निखारा। महात्मा गांधी ने गीता से अपनी आत्मशक्ति पाई।
कबीर कहते हैं
"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।"
यही इनर इंजीनियरिंग का सार है।
फ़िल्म थ्री इडियट्स का संवाद "All is Well" भी एक प्रतीक है—जब मन भीतर संतुलित है, तो बाहर की विपत्तियाँ क्षीण हो जाती हैं।
यह साधना कोई रहस्यवादी चमत्कार नहीं, बल्कि जीवन की आंतरिक संरचना का यांत्रिक शोधन है। जैसे स्थापत्य कला में नींव गहरी हो तो भवन अडिग रहता है, वैसे ही जब मनुष्य अपनी आत्मा से जुड़ता है, तभी उसका जीवन स्थिर, सुंदर और विराट हो उठता है।
अंततः यही कहा जा सकता है
"The kingdom of God is within you." (Bible)
और वेद घोषणा करते हैं "आत्मानं विद्धि" स्वयं को जानो।
यही सच्ची इनर इंजीनियरिंग है।
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