“तांडव तो बस शिव कर सकते हैं।” सचमुच, शिव का नृत्य अनन्त प्रतीक है; दर्शन भी, कला भी, विज्ञान भी।
शिव का ताण्डव न केवल ब्रह्मांड की धड़कन है, बल्कि मानव हृदय की भी स्पंदनधारा है। जब वे एक पैर से अज्ञान और अहंकार को दबाते हैं और दूसरे से संतुलन रचते हैं, तब यह जीवन का दर्शन बन जाता है। महाभारत में भीष्म ने कहा थाn“धर्मस्य मूलं सत्यं” और शिव का नृत्य उसी सत्य का प्रतीक है, जहाँ विनाश भी कृपा है और संरक्षण भी करुणा।
संस्कृति, साहित्य, कला और विज्ञान सभी शिवनृत्य की ओर संकेत करते हैं। कालिदास के रघुवंश में वर्णन है कि “जगद्रूपं महादेवः नृत्ये धत्ते”
ब्रह्मांड ही उनका नृत्य है। तुलसीदास ने रामचरितमानस में शिव को स्मरण करते हुए लिखा;
“गिरिजा पति महेसु, भक्त हित, नाना रूप धरें।”
यह नाना रूप ही तो पंचकृत्य हैं।
कहावत है
“जैसा नाचे नटराज, वैसा थिरके जग सारा।”
यह अतिशयोक्ति नहीं, यथार्थ है। विज्ञान कहता है कि हर कण नाच रहा है, हर परमाणु स्पंदित है। वही लय है जो कविता, संगीत, गणितीय समीकरण और भौतिकी की तरंगों में एक ही भाव प्रकट करती है।
भारतीय नाट्यशास्त्र नृत्य को ब्रह्म का प्रतिबिंब मानता है। आधुनिक विज्ञान भी कहता है,
ब्रह्मांड कण-कण में तरंग है, vibration है। वही कंपन शिव के डमरू से निकलकर string theory में वैज्ञानिक रूप लेता है।
महान वैज्ञानिक कैपरा ने अपनी पुस्तक The Tao of Physics में लिखा;
“Modern physics has shown us that every subatomic particle is actually a cosmic dancer.” यही तो नटराज का संदेश है।
नीत्शे ने कहा था;
“We have to dance to live.” जीवन स्थिरता में नहीं, गति में है।
फिल्म ओमकारा में एक संवाद है;
“तांडव तो बस शिव कर सकते हैं।” सचमुच, शिव का नृत्य अनन्त प्रतीक है; दर्शन भी, कला भी, विज्ञान भी।
यही कारण है कि नटराज की प्रतिमा CERN, जिनेवा में भी स्थापित है, मानवता को यह याद दिलाने के लिए कि परम सत्य, लय और नृत्य में ही है।
अतः नटराज की प्रतिमा मूर्ति भर नहीं, बल्कि ब्रह्म का सजीव दर्पण है। उसमें रस है, छंद है, अलंकार है, प्रतीक है। उसमें भक्ति भी है और दर्शन भी, कला भी है और विज्ञान भी। और जब हम इसे देखते हैं तो आत्मा स्वयं गुनगुनाती है,
“नटराजस्य नृत्ये जगत्सर्वं प्रवर्तते।”
यानी; नटराज के नृत्य में ही सम्पूर्ण जगत चलता है।
शिव का ताण्डव हमें सिखाता है कि जीवन केवल स्थिरता में नहीं, बल्कि निरंतर गति में है। और वही गति ही शांति है, वही नृत्य ही मुक्ति है। “शिवोऽहम्, शिवोऽहम्।” 🌺
“तांडव तो बस शिव कर सकते हैं।” सचमुच, शिव का नृत्य अनन्त प्रतीक है; दर्शन भी, कला भी, विज्ञान भी।
Reviewed by अभिषेक त्रिपाठी (अयोध्या)
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अक्टूबर 03, 2025
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