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स्नेह का प्रतीक रक्षाबंधन Rakshabandhan
- पौराणिक काल से,भाई बहन के स्नेह का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।

- इस दिन बहने भाइयों की कलाई पर रेशम की डोरी बांधकर भाई के सकुशल जीवन की कामना करती हैं और भाई बहन की रक्षा व मंगलमयता का संकल्प लेता है।
- बहनों द्वारा भाई की कलाई पर बांधा गया रक्षासूत्र रेशम का एक धागा मात्र नहीं,अपितु यह प्रतीक है,भारत की विविधता में एकबद्धता का।
- राखी के अलग अलग रंग विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं।समाज में भ्रातृभावना और सहयोग के मूल को समेटे यह पर्व आज अपनी व्यापकता और गहराई से चिरपरिचित है।
- इस पर्व के आयोजन के विविध रूप दृष्टिगोचर होते है। प्रकृति प्रेमी वृक्षों को रक्षासूत्र में बांधते है,जिसके पीछे छिपा रहस्य प्रकृति संरक्षण से है।
- प्राचीन काल में गुरुकुल की शिक्षा पूर्ण होने के उपरांत स्नातक विदा लेते वक्त आचार्य का आशीर्वाद लेने हेतु उन्हें रक्षासूत्र बांधता था,और आचार्य भी अपने शिष्य के भावी जीवन की मंगलकामना एवं अर्जित ज्ञान का समुचित उपयोग की कामना से रक्षासूत्र बांधता था।
- इसी परंपरा के अनुरूप आज किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के पूर्व पुरोहित द्वारा एक श्लोक
- येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
- तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
- वाचन के साथ यजमान की कलाई पर रक्षासूत्र बाँधा जाता है।
- इस सबसे इतर रक्षाबंधन के इस पावन पर्व के अनेकानेक प्रसंग प्रचलित हैं,जो देशकाल के अनुरूप पीढ़ी दर पीढ़ी चलायमान हैं।
- ©अभिषेक एन. त्रिपाठी
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