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परीक्षा टिप्स🏅🏆 All the best for your exams

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बोर्ड परीक्षा टिप्स  बोर्ड परीक्षाएं किसी भी छात्र जीवन में बहुत महत्वपूर्ण और भावी भविष्य की नींव होती हैं ऐसे में छात्र मस्तिष्क तमाम उहापोह और आत्मश्वास की कमी से जूझता रहता है आपकी तमाम जिज्ञासाओं सभी प्रश्नों का हल इस सेशन में मिलने वाला है.. परीक्षा के ठीक पहले नाइट को एक हेल्थी स्लीप बहुत जरूरी है ताकि अगले दिन आप खुद को तरोताजा महसूस करें और परीक्षा हाल में  अपना बेहतर प्रदर्शन कर सकें। परीक्षा सेंटर पर समय से पहले पहुंचे,अपने रोल नंबर के मुताबिक नोटिस बोर्ड से अपना रूम नंबर और भी अन्य जानकारियां प्राप्त करें। पानी की बोतल साथ में ले जाएं और यदि अनुमति हो तो एक एनालॉग वॉच भी ले जाए।  कॉपी पर इंफॉर्मेशन भरते समय अपने एडमिट कार्ड पर लिखी जानकारी के अनुसार भरें, ओएमआर वाले सेक्शन में नाम बड़े अक्षरों में लिखना होता है यानी ब्लॉक लेटर, साथ ही गोले भी भरने होते हैं। अब अगले पेज पर आते हैं कॉपी में दोनों और मार्जिन (सीधी रेखा) खींचे ताकि आप जो भी लिखे वह आकर्षक लगे। पेपर मिलने पर पहले उसे ध्यान से पढ़ें डिसाइड करें कौन सा प्रश्न पहले करना है कोशिश करें क्रमवार प्रश्नपत्...

मॉब लिंचिंग एक विसंगति Mob Lynching- A Nemesis

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मॉ ब लिंचिंग एक ऐसी घटना जब लोकतंत्र कानून व्यवस्था प्रशासन इत्यादि को दरकिनार कर आक्रोशित भीड़ खुद ही किसी सजा का त्वरित निर्धारण कर देती है  किसी अपराध के लिए या अनेक बार अफवाहों के आधार पर ही सजा देती है यूं कहें तो भीड़तंत्र का फैसला है यह जहां किसी को भी साक्ष्य की चिंता नहीं...शायद जरूरत भी नहीं समझते आखिर भीड़ जो है। और अंजाम कथित दोषी को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार देती है ये भीड़। प्रशासन के लिए भी एक चुनौती है क्योंकि भीड़ का कोई निश्चित चेहरा नहीं होता।  यदि इसके इतिहास की ओर रुख करें तो पता चलता है कि यह कोई आज की घटना नहीं बल्कि बरसों से चली आ रही एक चुनौती है फिर चाहे वह यूरोप की घटनाएं हो या अमेरिका में श्वेत और अश्वेत के बीच का संघर्ष और हिंसा और वर्तमान स्वरूप तो आप देख ही रहे हैं अक्सर आए दिन कहीं ना कहीं इस प्रकार की घटनाएं,खबरें आती रहती हैं  एक वक्त था जब अमेरिकी सिविल वार यानी गृह युद्ध के दौरान छोटे-छोटे अपराध के लिए भीड़ द्वारा न्याय व्यवस्था से ऊपर उठकर इस प्रकार की घटना को अंजाम दिया जाता था, और वहीं से चला रहा है मॉब लिंचिंग का सिलसिला । लिंचिंग इ...

स्नेह का प्रतीक रक्षाबंधन Rakshabandhan

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पौराणिक काल से,भाई बहन के स्नेह का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहने भाइयों की कलाई पर रेशम की डोरी बांधकर भाई के सकुशल जीवन की कामना करती हैं और भाई बहन की रक्षा व मंगलमयता का संकल्प लेता है। बहनों द्वारा भाई की कलाई पर बांधा गया रक्षासूत्र रेशम का एक धागा मात्र नहीं,अपितु यह प्रतीक है,भारत की विविधता में एकबद्धता का। राखी के अलग अलग रंग विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं।समाज में भ्रातृभावना और सहयोग के मूल को समेटे यह पर्व आज अपनी व्यापकता और गहराई से चिरपरिचित है। इस पर्व के आयोजन के विविध रूप दृष्टिगोचर होते है। प्रकृति प्रेमी वृक्षों को रक्षासूत्र में बांधते है,जिसके पीछे छिपा रहस्य प्रकृति संरक्षण से है। प्राचीन काल में गुरुकुल की शिक्षा पूर्ण होने के उपरांत स्नातक विदा लेते वक्त आचार्य का आशीर्वाद लेने हेतु उन्हें रक्षासूत्र बांधता था,और  आचार्य भी अपने शिष्य के भावी जीवन की मंगलकामना एवं अर्जित ज्ञान का समुचित उपयोग की कामना से रक्षासूत्र बांधता था। इसी परंपरा के अनुरूप आज किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के पूर्व पुर...

परीक्षा टिप्स🏅🏆 All the best for your exams

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【Q.】आज का प्रश्न है कि परीक्षा के दिनों में विद्यार्थियों का दिन रात एक करके पढ़ाई ही करते रहना लाभदायक है या नहीं.?? amar ujala yuwaan_2013  ◆ निसंदेह एग्जाम टाइम है तो मेहनत तो करनी ही चाहिए किंतु .... दिमाग को भी कुछ पल आराम की जरूरत पड़ती है। √पढ़ाई और मनोरंजन में सामंजस्य बिठाने वाला विद्यार्थी ही अव्वल दर्जे का छात्र कहलाता है। ◆ बोर्ड परीक्षा के दौरान विद्यार्थियों को प्रायः ऐसी समस्याओं से दो-चार पड़ता है मेरा सुझाव यही है कि परीक्षाओं के समय विद्यार्थियों का मनोरंजन बंद कर देने की अपेक्षा कम कर देना ज्यादा उचित रहेगा। ◆ये सच है कि बोर्ड परीक्षाएं विद्यार्थी जीवन का एक अहम हिस्सा होती हैं जिसका असर जीवन पर्यन्त रहता है अतः विद्यार्थियों को उनकी स्वयं की तैयारी और क्षमता के अनुरूप पढ़ाई और मनोरंजन का समय निर्धारित करने से ज्यादा सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे,इस दौरान अभिभावकों का दिशा निर्देश भी काफी कारगर साबित होगा। ◆ध्यान रखें अपने बच्चों पर शासन करने के बजाय उन्हें अनुशासन में रहना सिखाएँ।जरूरत से अधिक प्रतिबंध तनाव का कारण बनता है.. अति सर्वत्र वर्जयेत  धन्यवाद ...

समष्टिगत:विचार दूसरों की गलतियों से भी सीखें,To err is human.. Don't worry

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ग लतियां  मानव होने के बुनियादी लक्षणों में से एक है। ये कोई विकट समस्या नहीं,वरन यही तो वो सारगर्भित मूल है जिसे हम अपने अनुभव की लिस्ट में शामिल करते जाते हैं। हालांकि अनुभव अच्छे और बुरे दोनों हो सकते हैं। परंतु बुरे अनुभव मानव मस्तिष्क भर ज्यादा देर तक ठहरते हैं,और भविष्य के लिए स्वप्रेरण का काम करते हैं,सचेत करते रहते हैं ताकि वही भूल हम दोबारा से न कर बैठे। ये जरूरी नहीं कि इंसान अपनी ही गलतियों से सीखे हम दूसरों के अनुभवों का भी भरपूर इस्तेमाल, अपने भविष्य निर्माण में कर सकते हैं। यहां एक जरुरी बात ये कि दूसरों के अनुभवों से सीखने की आदत आपको उन त्रुटियों से बचा सकती है,क्योंकि अपनी गलतियों से सीख लेने हेतु आपको पहले उन त्रुटियों से होकर गुजरना पड़ सकता है। हमने अक्सर लोगों को कहते सुना है कि मुझे सफलता नहीं मिल रही,या फिर सफलता बहुत देर से मिली और भी अनेकों प्रश्न। इन सबकी वजह साफ है हम इन कमियों को नजरअंदाज करते आये हैं और व्यर्थ में परिस्थिति या किसी और को कोसते रहते हैं। मित्रों आज से प्रण कीजिये,गलती कोई भी करे,उससे सीखना आपको भी है,ऐसा करने से न सिर्फ आप उसे दुहराने से ...

मैं शहर हूँ:कंक्रीट के जंगल मे घिरे एक शहर की व्यथा.. city/town/metrocity/mahanagar

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गांवों का देश कहा जाने वाला भारत,आने वाले कुछ वर्षों में शहरों का देश हो सकता है, लोग रोजगार आदि के चक्कर मे शहरों की ओर भागे जा रहे, 'शहर रोजगार तो देते हैं साथ ही तमाम समस्याओं की जड़ भी बनते जा रहे हैं मेरी ये एक रचना जो कि आज शहर की व्यथा को बयां कर रही है...    व्यथित शहर मैं शहर हूँ... हरे बाग बगीचे नहीं यहां, कंक्रीट के जंगलों से घिरा, मैं शहर हूँ... विरले ही सुन पाता, पक्षियों की मधुर आवाज, दिन-भर वाहनों के शोर-शराबों में घिरा, मैं शहर हूँ...  स्वच्छ स्वस्थ और ताज़ी भाजी,         मिलना यहां दूभर हो जाता, केमिकल्स से चमकती सब्जियों से लदा,मैं शहर हूँ...            निर्मल और सुरम्य हवा                 हो गई कोसों दूर, चिमनियों के धुएं से घिरा, मैं शहर हूँ... आम, नीम, बरगद, महुआ के,     दर्शन हो गए दुर्लभ, जेठ की दुपहरी में, पत्थरों की तपन में घिरा, मैं शहर हूँ...      ©अभिषेक एन.  त्रिपाठी

पथ:a way to destination

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पथ:a way to destination     बढ़ते रहो, चलते रहो,         चलना तुम्हारा धर्म है.. होते क्यूँ निराश तुम?         ये तो तुम्हारा कर्म है, मुश्किलें आती और जाती रहेंगी राह में, क्या किसी राही का रुकना,और मिट जाना,भी धर्म है? तुममें ही मांझी छिपा है,            तुम ही वो धनुर्धर, ये जहां होगा तुम्हारा; बस छोड़ न देना डगर। भीड़ में से लोग, तुम पर फब्तियां भी कसेंगे, तुम कहीं रुक न जाना;         चलना तुम्हारा धर्म है... व्यर्थ में जाने न देना,बूँद भी इक स्वेद की; ये बूँद ही वो मोती है,जो लक्ष्य को भेदती। यदि हार भी गए,तो;            इसमें भला,क्या शर्म है; बढ़ते रहो, चलते रहो,चलना तुम्हारा धर्म है..!!    ©अभिषेक एन. त्रिपाठी (अयोध्या)