सिद्धिर्भवति कर्मजा

 श्रीमद् भगवद्गीता (अध्याय 4 श्लोक 12)

काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः।

क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा।।4.12।।



सिद्धिर्भवति कर्मजा~अभ्यास से ही सफ़लता प्राप्त होती है 

कोई टिप्पणी नहीं:

💐Most welcome dear friends; मित्रों, सभी का स्वागत है। आप अपने विचार कॉमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं -
1. Be civil and respectful; your words means whatever you are. लिखते समय सभ्यता का ध्यान ज़रूर रखें।
2. No self - promotion or spam.📢

Blogger द्वारा संचालित.