Bheetargaon temple भीतरगांव मंदिर Bhitargaon temple Kanpur Uttar Pradesh
[भीतरगांव मंदिर; मनुष्य और सभ्यता की प्रगति का दस्तावेज़]
Essence of civilisation – the ancient brick temple of Bhitargaon" A great historical treasure
कानपुर शहर से करीब 40किमी के फासले पर घाटमपुर तहसील के भीतरगांव में स्थित पूरी तरह ईंटों से निर्मित गुप्तकालीन वास्तुकला का एक बेजोड़ नमूना,जिसे आम जनमानस में भीतरगांव मंदिर के नाम से ख्याति प्राप्त है।
मंदिर का निर्माण 5वीं शताब्दी AD के आसपास नागर शैली में किया गया है।
कहा जाता है यह पुष्पपुर या फूलपुर नामक प्राचीन गांव का हिस्सा हुआ करता था। चूंकि यह पूरी तरह से गांव में स्थित है,वैसे भी हमारी एक दुनिया गांवों में भी बसती है, हमारे देश की खूबसूरती गांवों में ही है, कितना भी कहीं घूम लें, गांव हमारे जेहन में हमारे दिमाग में कहीं छुपकर बैठा ही रहता है,और समय समय पर हिलोंरे लेता रहता है। हम ग्रामीण इलाकों से होते हुए आगे बढ़ रहे थे,रास्ते की हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य मुझे गांव से और गांव के हिंदुस्तान से रिश्तों को प्रगाढ़ करने का अहसास दिला रही थी। रास्ते का दृश्य घर के कैलेंडर की तस्वीर जितना करीब महसूस हो रहा था, मानो वो सभी आज चलायमान हो चुके हैं।
ऐसा लगता है यहां उपमानों की कितनी भी छटा बिखेर दूं कम ही है।
कुछ मील की यात्रा के बाद मंदिर हमारे सामने अपनी उपस्थिति दर्ज कराता हुआ.. मन्दिर परिसर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के देख रेख में है।
मंदिर का अवलोकन करना कठिन है फिर भी प्रयास करता हूं।
68 से 70 फीट ऊंचे शिखर वाला यह मंदिर एक 36*47 फीट के चबूतरे (मंच)पर बनाया गया है। 8फीट मोटी दीवारें, जिसमें लगी ईंटों को सुंदर आलेखनों से तरासा गया है, बीच बीच में 2 2फीट चौड़े खानें(ताखें) जिनमें उभरी हुई सजीव एवम् सुंदर शिल्पक्रांतियां, उस दौर के शिल्पकारों कारीगरों और श्रमिको के अथक परिश्रम और लगन को बयां कर रही हैं।
मंदिर का मुख पूर्व दिशा में है। दीवारों पर दिख रही टेराकोटा की मूर्तियों में गणेश, शिव, पार्वती, महिषासुर मर्दनी,नदी देवी, विष्णु आदि अलंकृत हैं। चुकीं मंदिर के पृष्ठ भाग में वरहवतार की मूर्ति है, अनुमान लगाया जाता है, संभवतः यह एक विष्णु मंदिर था।
हालांकि समय के साथ इसकी दृश्यता कुछ धुंधली ज़रूर हुई है, किंतु मूल विशेषता पूरी तरह जीवंत है।
इतिहासकारों के मुताबिक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के जनक कहे जाने वाले अलेक्जेंडर कनिंगघम ने 1870 के दशक में जानकारी जुटाना शुरू किया और तब से समय समय पर इसके रख रखाव और संरक्षण हेतु बहुत सारा प्रयास किया जा चुका है।
गर्भगृह का प्रवेशद्वार अर्धवृताकार है,जिसे कनिंगघम ने हिंदू आर्क की संज्ञा दी।
आज मंदिर के गर्भगृह में कोई भी प्रतिमा नहीं है, गर्भगृह शून्य है, शायद मूर्तियां कच्ची मिट्टी की रही होंगी। गर्भगृह खिड़की रहित है।
आंशिक नष्ट होने की वजह:- संभवतः आकाशीय बिजली का प्रभाव रहा होगा एवम कालांतर में इसे क्षतिग्रस्त करने के भी प्रयास किए गए, हालांकि इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है।
हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए,हर इमारत की अपनी एक आयु भी होती है।
ईंटों का ही प्रयोग क्यों:-
प्राचीन काल के मंदिरों का अवलोकन करें तो मुख्य रूप से 3 प्रकार की मंदिर निर्माण सामाग्री सामने आती है।
प्रारंभ में रॉक कटिंग, मोनोलिथ इत्यादि मंदिर दृष्टिगोचर होते हैं। धीरे धीरे पत्थरों से निर्मित अन्य प्रकार के मंदिर भी बड़ी संख्या में मिले है। किंतु हर जगह पत्थरों की उपलब्धता आसानी से नहीं मिलती, ऐसे में क्षेत्र विशेष की भौगोलिक कारकों के आधार पर मंदिर निर्माण में भिन्नता देखी जा सकती है। चूंकि उत्तर भारत की अवस्थिति गंगा के कछारी मैदान में है, परिणाम स्वरूप यहां ईंटों की ईमारत मंदिर वास्तुकला का प्रभाव ज्यादा है। भीतरगांव मंदिर की कुछ ईंटें लखनऊ संग्रहालय में भी सुरक्षित रखी गई हैं।
यह सच है इतिहास को करीब से जानने और महसूस करने के महत्वपूर्ण दस्तावेजो, स्रोतों में से एक है, वास्तुकला। यह मनुष्य और सभ्यता की प्रगति को संरक्षित और सुरक्षित करने का एक पुरजोर तरीका है।
तो; ये थी अपने आस पास के भारत को जानने की यात्रा।
भारत की विविधता, जटिलता और ऊर्जा को समझने की यात्रा।
चलते चलते;
कॉमेंट सेक्शन में ज़रूर लिखें,इस ऐतिहासिक धरोहर को आप सभी तक पहुंचाने में कितना सफल हुआ? फ़िलहाल सफलता और असफलता से परे मायने रखता है किया गया प्रयास। जिज्ञासाओं के आधार पर आगे भी कुछ अन्य धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष इमारतों को आप सभी तक साझा करने का प्रयास किया जायेगा।
फोटो गैलरी
#भीतरगांव मंदिर
#एक ऐसा मंदिर जहां शाम होते ही इंसान तो क्या परिंदा भी पर नहीं मार सकता?
#मंदिर की देखभाल करती हैं आत्माएं?
#जहां आजतक पूजा नहीं हुई?
#Bhitargaon temple
#Bheetargaon temple
इतिहास को इतने आत्मीयता से महसूस कर पाना अपने आप में दुर्लभ है। भीतरगांव मंदिर सिर्फ एक स्थापत्य नहीं, एक जीवित दस्तावेज़ है – सभ्यता की नींव और श्रम की पूजा का प्रतीक। अद्भुत प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा संकलन है जिससे हम सभी आसानी से इतिहास के उन पक्षों को पढ़ और समझ सकते हैं जिससे वंचित रह गए हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन, अन्य स्थानों का भी ऐसे ही वर्णन करें , मेरी शुभकामनाएं🌺🙏🏻