युवा: शक्ति, स्वप्न और संकल्प का अनमोल संगम

युवा वह नहीं होता जो केवल आयु से नव्य हो। वह होता है विचारों से नवीन, दृष्टिकोण से सजग, और कर्म से प्रेरित। युवा के पदचिन्हों में भविष्य की आहट होती है, उसकी आँखों में सपनों का सूरज चमकता है, और उसके हाथों में नव निर्माण की आस्था। युवा के बिना राष्ट्र, समाज और सभ्यता की गति ठहर जाती है। "युवा वह होता है जिसके पैरों में शक्ति, हाथों में गति, हृदय में ऊर्जा और आंखों में सपने होते हैं।"
Youth is not a time of life; it is a state of mind. – Samuel Ullman
ऋग्वेद में कहा गया है: "चरैवेति चरैवेति।" (सदैव गतिशील रहो) यह युवाओं के लिए एक प्रेरणा है कि वे स्थिरता को ठुकराएं, जड़ता को त्यागें और नवचेतना को स्वीकारें। रामायण में भगवान राम के जीवन से एक महत्वपूर्ण प्रसंग- वनवास की कठिन घड़ी में भी वे मानसिक दृढ़ता, कर्मनिष्ठा और युवोचित साहस का परिचय देते हैं। यह स्पष्ट करता है कि युवावस्था का सार केवल शक्ति नहीं, उत्तरदायित्व का वहन भी है। महाभारत में अर्जुन की मानसिक दुविधा को दूर करते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं: "क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।" (हे पार्थ, यह कायरता तुम पर शोभा नहीं देती) यह श्लोक आज भी हर युवा को कहता है: उठो, जागो, और अपने कर्म का निर्वहन करो।
सरयू, अयोध्या (2025)
सरयू, अयोध्या (2025)
नचिकेता की कथा कठोपनिषद में युवा धैर्य, जिज्ञासा और सत्य की खोज का जीवंत उदाहरण है। जब यमराज ने उसे वरदान देने का अवसर दिया, तो उसने धन, वैभव और भोग की जगह ‘आत्मज्ञान’ को चुना। यह युवाओं को बताता है कि विवेक और विचारशीलता भी युवावस्था की पहचान है। पश्चिम में अलेक्ज़ेंडर द ग्रेट मात्र 20 वर्ष की आयु में राजा बना और विश्व विजय के अभियान पर निकल पड़ा। लेकिन मृत्युशय्या पर उसने कहा, “मेरे हाथ खुले हों, ताकि दुनिया देखे; महान विजेता भी खाली हाथ जाता है।” यह युवाओं को यथार्थ का पाठ पढ़ाता है। अल्बर्ट आइंस्टीन ने 26 वर्ष की उम्र में थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी दी। न्यूटन ने प्लेग काल में कॉलेज से बाहर रहते हुए गुरुत्वाकर्षण की अवधारणा दी। यानी, युवा अवस्था ही मानव मस्तिष्क की रचनात्मकता का चरम काल होती है। आज न्यूरोसाइंस कहता है कि 18–25 की आयु में मस्तिष्क का प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स तेज़ी से विकसित होता है, जो निर्णय, तर्क और नवाचार का केंद्र होता है।
भारत की आज़ादी का इतिहास युवाओं के बलिदान से लिखा गया है – भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद–सभी ने 25 से पहले अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। आज भी जब हम ISRO, IITs, Startups या लोक सेवा में युवाओं की उपस्थिति देखते हैं, तो स्पष्ट होता है कि "युवा राष्ट्र का मेरुदंड हैं।" आज का युवा एक ओर डिजिटल युग के शिखर पर है, वहीं दूसरी ओर डिजिटल डिप्रेशन, आत्महत्या, असुरक्षा, और नैतिक भ्रम से ग्रस्त भी। NCRB की रिपोर्ट (2023) के अनुसार, भारत में आत्महत्या करने वालों में सबसे बड़ी संख्या 18–30 वर्ष के युवाओं की है। यह संकेत है कि केवल आर्थिक या शारीरिक विकास नहीं, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक परिपक्वता भी उतनी ही आवश्यक है।

युवावस्था केवल जीवन का एक पड़ाव नहीं, यह ईश्वर का वरदान है। यह वह कालखंड है जब व्यक्ति केवल स्वयं नहीं बनता, समाज, संस्कृति और सृष्टि का पुनर्निर्माण करता है। इसलिए युवा को चाहिए कि वह अपने भीतर द्रौपदी का साहस, राम की मर्यादा, अर्जुन की एकाग्रता, बुद्ध की करुणा और विवेकानंद की दृष्टि धारण करे। "न मन्दे न प्रमादे युवा नास्ति।" (जिसमें प्रमाद और आलस्य न हो, वही सच्चा युवा है।) 
युवा वह है जो वर्तमान में जीकर, भविष्य को गढ़े। युवा अर्थात् जिसके विचारों में ज्वाला हो, कर्म में ज्योति हो, और आत्मा में जागरण हो। युवाओं! उठो, जागो, और जब तक लक्ष्य न मिले, रुको मत। यह युग तुम्हारा है। तुम परिवर्तन हो।




कोई टिप्पणी नहीं:

💐Most welcome dear friends; मित्रों, सभी का स्वागत है। आप अपने विचार कॉमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं -
1. Be civil and respectful; your words means whatever you are. लिखते समय सभ्यता का ध्यान ज़रूर रखें।
2. No self - promotion or spam.📢

Blogger द्वारा संचालित.