प्रकृति और हम
प्रकृति हमारे चारों ओर मौन शिक्षक की तरह खड़ी है। वह हमें सिखाती है कि सच्चा ज्ञान विनम्रता में है, न कि दिखावे में। यहाँ हर वृक्ष, हर नदी, हर पर्वत हमें सिखाता है कि सच्ची महानता विनम्रता में है, दिखावे में नहीं। पीपल का वृक्ष विशाल है, पर अपनी छाया सभी को बराबर देता है। गंगा अविरल बहती है, पर कभी यह नहीं कहती कि वह सबसे पवित्र है। पर्वत ऊँचे हैं, पर अपनी ऊँचाई का घमंड नहीं करते; वे यह नहीं कहते कि वे सबसे ऊँचे हैं, बल्कि चुपचाप धरती को सहारा देते हैं। वे धैर्य और स्थिरता का प्रतीक बने रहते हैं। फूल हमें सिखाते हैं कि सुगंध बाँटना ही जीवन का उद्देश्य है। गुलाब अपनी खुशबू किसी के नाम से नहीं जोड़ता; वह हर आने-जाने वाले को समान रूप से महक देता है। वृक्ष फल लगने पर झुक जाता है यह बताता है कि सच्ची उपलब्धि से घमंड नहीं, विनम्रता आती है। नदी हमें बताती है कि जितना अधिक वह बहती है, उतनी ही सबको जीवन देती है। वह कभी यह दावा नहीं करती कि वही सबसे श्रेष्ठ है। आकाश हमें विनम्रता का अद्भुत पाठ पढ़ाता है। वह सबको अपने आँचल में जगह देता है, चाहे छोटा पक्षी हो या विशाल बादल। उसकी असीम और उज्ज्वल उदारता सभी को समान स्थान देती है। सूरज तपकर भी जगत को प्रकाश देता है, यह त्याग और कर्तव्य का प्रतीक है। वहीं चाँद शीतलता से हमें सिखाता है कि कोमलता भी एक शक्ति है। तारे अंधकार में चमककर दिखाते हैं कि कठिन समय में भी प्रकाश संभव है। बारिश धूल को धो देती है और करुणा का रूप बन जाती है। इंद्रधनुष रंगों से कहता है कि विविधता ही वास्तविक सौंदर्य है। ओस की बूँदें नन्हीं होकर भी सुबह की ताजगी का प्रतीक हैं। हवा सहजता से जीवन देती है, उसकी उपस्थिति महसूस होती है पर वह कभी दिखती नहीं यही सच्ची विनम्रता है। ऋतुएँ भी अपना पाठ पढ़ाती हैं। सर्दी धैर्य और सहनशीलता देती है, गर्मी कठोरता में तपने का साहस, और बसंत पुनर्जन्म व आशा का प्रतीक बनता है। पतझड़ कहता है कि खोना भी नया पाने की भूमिका है। भोर हर दिन नया आरंभ सिखाती है, तो साँझ बताती है कि हर अंत में भी सौंदर्य है।
इस तरह हर पत्ता, हर कली, हर हवा का झोंका, हर बदलती ऋतु हमें याद दिलाती है कि सच्चा ज्ञान दिखावे में नहीं, बल्कि प्रकृति जैसी सरलता, विनम्रता और सहिष्णुता में है। प्रकृति कहती है “जो जितना मौन और गहरा है, वही उतना महान है।”
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