ईश्वर नियम है, और नियम ही ईश्वर। यही ज्ञान, यही मुक्ति, यही सत्य है।
“न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।”
ईश्वर पासे नहीं फेंकता, “God doesn’t play dice.” आइंस्टाइन का यह वाक्य केवल विज्ञान का प्रतिवाद नहीं, बल्कि ब्रह्मांड के अनुशासन का घोष है। सृष्टि कोई अराजक खेल नहीं, यह एक ऋतम्, सत्य और व्यवस्था का नृत्य है। जैसा उपनिषद कहते हैं, “ऋतं च सत्यं चाभीद्धात् तपसोऽध्यजायत।”
यह विश्व एक नियति का संगीत है, जिसमें हर परमाणु, हर प्राणी एक लय में थिरकता है।
रामायण में जब राम समुद्र से मार्ग माँगते हैं, वह जानते हैं कि प्रकृति नियमों से बंधी है, “प्रकृति के नियमों का उल्लंघन नहीं, उनके संग चलना ही धर्म है।” यही बात महाभारत में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, “कर्मण्येवाधिकारस्ते...” मनुष्य कर्म कर सकता है, परिणाम नहीं। परिणाम तो उस विराट व्यवस्था के हाथों में है, जो सदा न्याय करती है।
आधुनिक भौतिकी का “क्वांटम अनिश्चितता” सिद्धांत जहाँ संयोग की बात करता है, वहीं वेदांत कहता है; संयोग भी ईश्वर की ही योजना है। जैसे कबीर ने कहा,
“चलती चाकी देख के, दिया कबीरा रोय।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय।”
फिल्म “Interstellar” में कूपर कहता है, “Love is the one thing that transcends time and space.” वही तो ब्रह्म है; जो नियमों से भी परे है, पर उन्हें रचता भी वही है।
यूनानी दार्शनिक Heraclitus कहता है, “The universe works by law, not by chance.” और उपनिषद में वही भाव है - “यस्मात् सर्वाणि भूतानि जायन्ते।”
मनुष्य चाहे गणित रचे या दर्शन, अंततः उसी रहस्य के चारों ओर घूमता है, जो dice नहीं फेंकता, पर हर फेंके हुए पासे में उसका ही अंक होता है।
“ईश्वर नियम है, और नियम ही ईश्वर।” यही ज्ञान, यही मुक्ति, यही सत्य है।
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