कृष्ण केवल एक देवता नहीं, वे जीवन के शाश्वत संगीत हैं।
कृष्ण केवल एक देवता नहीं, वे जीवन के शाश्वत संगीत हैं। गीता के गहन उपदेशों से लेकर वृंदावन की मधुर बांसुरी तक, वे दर्शन भी हैं और रस भी। वेदों ने उन्हें “सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म” कहा, तो मीरा ने उन्हें प्राणों का प्राण माना। रामायण में जहाँ राम मर्यादा के प्रतीक हैं, वहीं महाभारत में कृष्ण नीति और युक्ति के।
श्रीकृष्ण का दर्शन केवल उनकी मूर्ति या बांसुरी की छवि में सीमित नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक अनुभूति है। वे बालकृष्ण बनकर निष्छल प्रेम सिखाते हैं, राधाकृष्ण बनकर भक्ति का अद्वैत रूप प्रकट करते हैं, महाभारत में अर्जुन के सारथी बनकर कर्मयोग का गूढ़ रहस्य समझाते हैं, और विश्वरूप दिखाकर यह सिद्ध करते हैं कि परमात्मा हर जगह विद्यमान है। गोवर्धन धारण कर वे हमें प्रकृति-सम्मान का संदेश देते हैं, और रासलीला में आत्मा-परमात्मा का अद्वितीय मिलन दर्शाते हैं। शेक्सपियर ने कहा था, “All the world’s a stage” और इस रंगमंच पर कृष्ण निर्देशक भी हैं, अभिनेता भी। कबीर ने गाया - "जाको मीरा दीवानी, सोई सच्चा सोई पीर।" वही कृष्ण हर युग के प्रेम की धुरी बने। आइंस्टीन ने ब्रह्मांड को 'नियमों का खेल' कहा, किंतु कृष्ण की लीलाएँ सिखाती हैं कि यह जीवन भी एक अनंत उत्सव है।
आज के समय में कृष्ण का दर्शन हमें सिखाता है कि भौतिकता और आत्मिकता के बीच संतुलन रखें, निस्वार्थ भाव से कर्म करें, और हर परिस्थिति में आत्मविश्वास बनाएँ। गांधी ने गीता को 'आध्यात्मिक मार्गदर्शक' कहा, और वही वाणी उनके संघर्ष की शक्ति बनी। यत्र योगेश्वरः कृष्णो… यदि हमारे कार्य उचित और श्रेष्ठ हैं, तो अंततः परिणाम अनुकूल होगा, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। जन्माष्टमी पर कृष्ण केवल जन्म नहीं लेते, वे हर हृदय में आलोक जगाते हैं। बांसुरी की मधुर तान की तरह वे हमें स्मरण कराते हैं - जीवन एक उत्सव है, और प्रेम उसका परम स्वर।
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥"

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