संतुलन कोई तपस्या नहीं, यह रोज़मर्रा की समझ है।

अभिषेक त्रिपाठी
(अयोध्या, उ.प्र.)

पुराना साल जा रहा है। 2025 धीरे-धीरे हमारे जीवन से उतर रहा है, बिना शोर किए, बिना हिसाब माँगे। जाते-जाते वह हमारे जेहन में बहुत कुछ रख गया है: कुछ मीठी यादें, कुछ कड़वे अनुभव, कुछ अधूरे सपने और कुछ ऐसे सच, जिन्हें समझने में पूरा साल लग गया। 

आज 31 दिसंबर है, ठीक एक दिन बाद 1 जनवरी 2026 की पहली सुबह। यह केवल तारीख़ नहीं बदली है, यह हमें फिर से सीखने, सँभलने और संतुलित होने का अवसर दे रही है। पिछले साल ने हमें यही सिखाया कि जीवन में संतुलन केवल भोजन तक सीमित नहीं होता। धन आया तो उसे संभालना भी सीखना पड़ा, वचन बोले तो उनकी ज़िम्मेदारी उठानी पड़ी। कहीं यश मिला तो अहंकार को रोकना पड़ा, कहीं अपयश आया तो स्वयं को टूटने से बचाना पड़ा। सुख आए तो उन्हें थामे बिना जीना सीखा, दुःख आए तो उनसे भागे बिना सहना। सच यही है, जो जीवन को पचा लेता है, वही जीवन को जी पाता है। 2025 ने यह भी दिखाया कि हर लड़ाई बाहर की नहीं होती। कई युद्ध भीतर लड़े गए; अपने डर से, अपने क्रोध से, अपनी अपेक्षाओं से। हमने जाना कि चुप रहना कमजोरी नहीं, और हर उत्तर शब्दों में ही हो, यह ज़रूरी नहीं। दार्शनिक कहते हैं कि घटनाएँ हमें नहीं तोड़तीं, हमारा प्रतिक्रिया-भाव तोड़ता है। शरीर बाहर की उथल-पुथल में भी भीतर स्थिर रहने का प्रयास करता है। विज्ञान इसे होमियोस्टेसिस कहता है; शरीर का भीतर से स्थिर रहना, चाहे बाहर मौसम बदले। मनोविज्ञान कहता है कि भावनाओं को दबाओ मत, उन्हें समझो और साधो; जैसे आग से रोटी भी पकती है और घर भी जलता है। अर्थशास्त्र बताता है कि आय और व्यय का संतुलन बिगड़ा तो समृद्धि भी बोझ बन जाती है। प्रकृति का नियम भी यही है; अति वर्षा बाढ़ बनती है, अति धूप सूखा। पुरानी कथाओं में कहा गया है कि नदी इसलिए पवित्र मानी जाती है क्योंकि वह रुकती नहीं, पर बहते हुए भी मर्यादा नहीं तोड़ती। यही संतुलन है। एक फिल्मी संवाद याद आता है; “ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं।” जीवन बड़ा तब होता है जब हम प्रशंसा को विनय से, अपमान को धैर्य से, सुख को कृतज्ञता से और दुःख को साहस से पचा लेते हैं।

2026 सामने है; एक नया पन्ना। इस बार संकल्प भारी नहीं हों, बस सच्चे हों। कम वादे, पर पूरे प्रयास। अधिक धैर्य, कम शिकायतें। रिश्तों में जीतने की नहीं, निभाने की चाह। स्वयं से यह वादा कि हम हर अनुभव को, चाहे वह 'कड़वा हो या मीठा’; समझकर स्वीकार करेंगे। नया साल कोई जादू नहीं, पर नई दृष्टि ज़रूर है। जो बीत गया, उसे सीख बना लें। जो आने वाला है, उसे संतुलन के साथ जी लें। यही 2025 की सबसे सुंदर विदाई और 2026 का सबसे सशक्त स्वागत है।

“चलिए ज़िंदगी का जश्न कुछ इस तरह मनाते हैं।
कुछ अच्छा याद रखते हैं, और कुछ बुरा भूल जाते हैं।”




1 टिप्पणी:

💐Most welcome dear friends; मित्रों, सभी का स्वागत है। आप अपने विचार कॉमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं -
1. Be civil and respectful; your words means whatever you are. लिखते समय सभ्यता का ध्यान ज़रूर रखें।
2. No self - promotion or spam.📢

Blogger द्वारा संचालित.