कवि संदीप द्विवेदी की पुस्तक "रोने से कुछ होता है क्या?" समीक्षा अभिषेक त्रिपाठी अयोध्या
(तस्वीर : सरयू तट, अयोध्या 2025) क वि संदीप द्विवेदी जी की यह पुस्तक "रोने से कुछ होता है क्या?" किसी प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ शुरू होती है, लेकिन जैसे-जैसे आप कविता दर कविता पढ़ते हैं, यह एक उत्तर की यात्रा बन जाती है। यहाँ आँसू हैं, मगर आत्मदया नहीं। यहाँ वेदना है, लेकिन वह वैराग्य की नहीं, परिवर्तन की प्रेरणा बन जाती है। पुस्तक के शीर्षक से ही स्पष्ट है - यह संग्रह केवल कविता नहीं, अनुभव का साक्षात्कार है। पुस्तक की कविताएं - "यदि राम सा संघर्ष हो", "गांडीवधारी अर्जुन", "सूर्यपुत्र कर्ण", "श्रीकृष्ण की फटकार", "छत्रपति शिवाजी", "पितामह भीष्म", "वीर अभिमन्यु" - यह सब रामायण-महाभारत, इतिहास की जीवंत छवियाँ हैं, जो आज के व्यक्ति को आईना दिखाती हैं। "पिता, जो समझा न गया", "तुम हो नहीं अकेले यारा", "मैं कहूं तो क्या कहूं" - जैसे शीर्षक आत्मस्वीकृति की भाषा हैं। संदीप जी की कलम हर व्यक्ति के भीतर विरुद्ध भावों को न केवल पहचानती है, बल्कि उन्हें स्पष्ट और संवेदनशील स्व...